सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने रविवार को न्यायपालिका में एक नया अध्याय शुरू किया है। हाई कोर्ट के जजों से मुलाकात कर कॉलेजियम ने न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए एक नई प्रक्रिया अपनाई है। इस बार फाइलों में दर्ज जानकारियों पर निर्भर रहने के अलावा, उम्मीदवारों से व्यक्तिगत बातचीत के माध्यम से उनकी योग्यता और व्यक्तित्व को समझने पर जोर दिया गया है। ये कदम न्यायिक प्रणाली में सुधार की दिशा में महेत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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न्यायपालिका में विवाद के बाद कॉलेजियम की नई पहल
हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित बयानों के कारण न्यायपालिका में गंभीर चिंताएं उठी थीं। वीएचपी के एक कार्यक्रम में उन्होंने धर्म और न्याय से जुड़े बयान दिए थे, जिसे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ माना गया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम एक्टिव हुआ है और इस मुद्दे को लेकर न्यायपालिका में सुधार की पहल की है।
जजों से किया संवाद
इस बार कॉलेजियम ने राजस्थान, इलाहाबाद और बॉम्बे हाई कोर्ट के लिए नामांकित न्यायिक अधिकारियों और वकीलों से मुलाकात की है। मुख्य जज संजीव खन्ना के नेतृत्व में, जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की टीम ने यह सुनिश्चित किया है कि न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता हो। फाइलों में दर्ज औपचारिक जानकारियों से इतर, उम्मीदवारों से सीधे संवाद ने उनके व्यक्तित्व की समझ को और मजबूत किया है।
जस्टिस यादव के बयानों पर सख्त कार्रवाई
17 दिसंबर को कॉलेजियम ने जस्टिस यादव से मुलाकात कर उनके बयानों पर चर्चा की। मुख्य जज ने उन्हें न्यायिक निष्पक्षता बनाए रखने और संवैधानिक मूल्यों का पालन करने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस यादव के भविष्य को लेकर अब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन उनके ट्रांसफर और जांच की संभावना बनी हुई है।
2018 में हुई थी प्रक्रिया सुरु
व्यक्तिगत संवाद के माध्यम से जजों की नियुक्ति की यह प्रक्रिया 2018 में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के कार्यकाल में शुरू की गई थी। लेकिन, बाद में इसे बंद कर दिया गया था। अब इसे फिर से लागू कर के कॉलेजियम ने न्यायिक प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।
इस कदम से यह उम्मीद की जा रही है कि न्यायपालिका में विश्वसनीयता और निष्पक्षता को और अछे से बनाया जा सकता है।