Portable Suicide Drones in Army नागास्त्र 1 लोइटरिंग म्यूनिशन का पहले बैन सेना को मिल गया है। ये पहला स्वदेशी मानव-पोर्टेबल (Portable Suicide Drones in Army | Nagastra 1) आत्मघाती ड्रोन है। इसे सटीक हमलों के लिए डिजाइन किया गया है। आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल करके ऑर्डर किए गए ड्रोन, एक साल के भीतर इसे डिलीवर कर दिया गया।
हाइलाइट्स
1. भारती सेना को मिला पहला स्वदेशी सुसाइड ड्रोन
2. लॉन्च-पैड, घुसपैठियों पर सटीक टारगेट में सक्षम
3. ऑर्डर के एक साल में आर्मी को किया गया डिलीवर

लखनऊ. भारतीय सेना को अपने पहले स्वदेशी मैन-पोर्टेबल आत्मघाती ड्रोन मिल गए हैं। इन सुसाइड ड्रोन के आने से जवान अब अपनी जिंदगी खतरे में डाले बिना दुश्मन को टारगेट कर सकते हैं। ये ड्रोन्स दुश्मनों के प्रशिक्षण शिविर, लॉन्च पैड और घुसपैठियों पर सटीक निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। सूत्रों के मुताबिक, नागास्त्र 1 लोइटरिंग म्यूनिशन का पहला बैच, जिसे आत्मघाती ड्रोन के रूप में भी जाना जाता है, सेना को मिल गया है।
Portable Suicide Drones in Army
इन ड्रोन की खासियत पर गौर करें तो जरूरत पड़ने पर ये सीमा पार हमले करने की भी क्षमता रखते हैं। सेना ने इमरजेंसी खरीद शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ड्रोन का ऑर्डर दिया था।
इस ड्रोन से जरूर बढ़ेगी पाकिस्तान-चीन की टेंशन
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन दोनों ही सीमाओं पर निगरानी के दौरान तुरंत जरूरतों को पूरा करने के लिए इन आत्मघाती ड्रोन के ऑर्डर दिए गए थे। यही नहीं ऑर्डर के एक साल के भीतर ही ये भारतीय सेना को सौंप दिया गया। इस ड्रोन की खास बातों पर गौर करें तो ये ज्यादा तापमान पर बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी काम कर सकते हैं।
इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) की ओर से भारत में पूरी तरह डिजाइन और डेवलप ये ड्रोन सटीक निशाना लगाने में सक्षम हैं। जीपीएस तकनीक से लैस ये ड्रोन 2 मीटर की एक्यूरेसी के साथ लगभग 30 किमी की रेंज तक टारगेट को निशाना बना सकते हैं।
जानिए कैसे काम करेगा नागास्त्र-1 (Nagastra-1)
पैदल चल रही सेना के जवानों को लेकर इसे डिजाइन किया गया है। ड्रोन में कम आवाज और इलेक्ट्रिक प्रोपल्सन है जो इसे एक साइलेट किलर बनाता है।
इसका इस्तेमाल कई तरह के सॉफ्ट स्किन टारगेट के खिलाफ किया जा सकता है। पारंपरिक मिसाइलों और सटीक हथियारों से अलग ये कम लागत वाला ऐसा हथियार है, जिन्हें सीमा पर घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों के ग्रुप को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इस ड्रोन की एक और खास विशेषता पैराशूट रिकवरी मैकेनिज्म है, जो मिशन निरस्त होने पर गोला-बारूद को वापस ला सकता है। ऐसे में इसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्वदेश में बना पहला मैन-पोर्टेबल आत्मघाती ड्रोन
इसी तरह के सिस्टम का इस्तेमाल मौजूदा संघर्ष में बड़े पैमाने पर किया जा रहा। खासकर यूक्रेन-रूस युद्ध और आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच झड़प में भी इसे देखा गया।
भारतीय सशस्त्र बलों ने आपातकालीन खरीद के पहले दौर में विदेशी वेंडर्स से इसी तरह की प्रणाली हासिल की थी, हालांकि, उस समय काफी अधिक कीमत चुकानी पड़ी थी। नागास्त्र 1 में 75 फीसदी से अधिक स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल किया गया है, जिसके चलते विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम हो गई है। इसी के चलते उत्पादन के पैमाने को देखें तो इसकी लागत कम हुई है। ये तकनीक भारत के मित्र देशों को गोला-बारूद के निर्यात में अहम रोल निभा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वो इसी तरह के सॉल्यूशन की तलाश कर रहे हैं।
भारतीय सशस्त्र बल पिछले दो वर्षों से स्टैंडऑफ हथियारों में निवेश कर रहे। इनमें से कुछ दुश्मन के इलाके में गहराई तक काम कर सकते हैं। हमारा पूरा ध्यान घरेलू उद्योग से ऐसी सभी प्रणालियां खरीदने और सभी प्रकार के इम्पोर्ट से बचने पर है।
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